राजनीतिक दल, किसान और कृषि-श्रमिक संगठन, महिला संगठन, वैज्ञानिक और अन्य जन आंदोलन संयुक्त रूप से चला रहे हैं इस राष्ट्रीय अभियान को
नई दिल्ली, अक्टूबर 26: जीएम सरसों के खिलाफ लड़ाई ने देश भर के साँझा मोर्चे का रूप ले लिया है. इस की एक झलक कल अक्टूबर 25 के दिन जंतर मन्तर नई दिल्ली में एक दिन के धरने में दिखाई दी| सरसों सत्याग्रह के अंतर्गत विभिन्न राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों, किसान संगठनों, खेत मजदूर यूनियनों, विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के श्रमिक यूनियनों, उद्योग प्रतिनिधियों, वैज्ञानिकों, महिला अधिकार संगठनों, खाद्य सुरक्षा अभियान और अन्य नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने इकट्ठे मिल कर यह शपथ ली कि अगर केन्द्र सरकार ने विवादास्पद जीएम सरसों का अनुमति देने का प्रयास किया तो संयुक्त संघर्ष के माध्यम से इसे नाकाम कर दिया जाएगा। इन भिन्न-भिन्न विचारधारा के विभिन्न समूहों का इस तरह एक मंच पर आना केंद्र सरकार द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खरपतवारनाशक सहनशील जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार की कोशिशों का परिणाम है।
इस विरोध प्रदर्शन में भारत भर के लगभग 150 संगठनों की भागीदारी थी जिन में राष्ट्रीय स्तर के 29 संगठन जैसे भारतीय किसान युनियन, अखिल भारतीय किसान सभा, भारतीय किसान संघ, स्वदेशी जागरण मंच, सतत एवं समग्र कृषि के लिए गठबंधन (आशा), अखिल भारतीय सजीव कृषक समाज, भारत का मधुमक्खी पालन उद्योग परिसंध, आजादी बचाओ आंदोलन, अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), भारतीय महिलाओं की नेशनल फेडरेशन (NFIW), राष्ट्रीय भोजन का अधिकार अभियान आदि शामिल थे. ये संगठन मिल कर देश के कई करोड़ किसानों, खेतिहर मजदूरों, वैज्ञानिकों, और समाज के सभी वर्गों एवं आम नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन के अलावा धरने में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, जद (यू), सीपीआई (एम), सीपीआई, द्रमुक, स्वराज इंडिया पार्टी आदि के नेता भी शामिल हुए.
यदि जीएम सरसों को मंजूरी दे दी गई तो पुरुष बाँझपन और खरपतवार नाशक सहनशीलता के तीन जीनों के साथ यह भारत में जारी होने वाली पहली जीएम खाद्य फसल होगी. इस महीने पर्यावरण मंत्रालय के तहत नियामक जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी), जो जीएम फसलों के लिए नोडल एजेंसी है, ने जीएम सरसों की जैव सुरक्षा अध्ययन के कुछ अंशों को सार्वजनिक कर जन संवाद करने का जो ढकोसला किया था उस की व्यापक आलोचना हुई थी। इस से यह स्पष्ट संकेत मिले थे कि सरकार जल्दी ही इस जीएम सरसों को अनुमति दे कर इस वर्ष ही बुआई कराना चाहती है।
धरने की शुरुआत करते हुए देश के बड़े किसान संगठनों ने जीएम सरसों को भारत की खेती और भोजन में शामिल करने के प्रयासों को किसान विरोधी बताया। भारतीय किसान यूनियन के श्री युद्धवीर सिंह ने कहा कि ‘इस देश के वास्तविक किसान संगठनों ने तो कभी जीएम बीजों की माँग नहीं की’। भारतीय किसान संघ के रतन लाल ने कहा कि जीएम फसलों से देश को वैसे ही नुकसान का खतरा है जैसा कि ईस्ट इंडिया कंपनी से हुआ था जिस ने व्यापार से शुरू कर के धीरे-धीरे पूरे देश को ही गुलाम बना दिया था। इस लिए किसान संगठनों को मिल कर जीएम फसलों को रोकना चाहिए। देश भर के विभिन्न किसान संगठनों के नेताओं जैसे अखिल भारतीय किसान सभा से हन्नान मोल्ला और वीजू कृष्णन, भारतीय किसान यूनियन से राकेश टिकैत, रामपाल जाट (राजस्थान) और बद्री भाई (गुजरात) ने घोषणा की कि अगर अब भी सरकार किसानों की आवाज को नहीं सुनती है तो हम लड़ाई को तेज कर के सड़कों पर उतरेंगे। जीएम बीजों से किसानों की आय बढ़ने की बजाय खेती का संकट और किसानों की आत्महत्या के आंकड़े बढ़ेंगे।
सरसों सत्याग्रह के लिए भेजे गए अपने एक वीडियो संदेश में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि किसानों के नाम पर जीएम सरसों को लाने के प्रयास किसानों के साथ एक बड़ा धोखा है। उन्होंने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि बिहार ने हमेशा जीएम फसलों का विरोध किया है – चाहे जीएम मक्का का क्षेत्र परीक्षण हो या बीटी बैंगन का। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर केंद्र सरकार राज्य सरकारों की अनदेखी कर के जीएम सरसों को अनुमति देती है, तो उसे बिहार के लोगों के कड़े विरोध का सामना करना होगा। बिहार के लोग किसी भी कीमत पर राज्य में जीएम बीजों को आने नहीं देंगे।
दिल्ली के मंत्री कपिल मिश्रा ने सवाल उठाया कि केंद्र सरकार उन को सत्ता में पहुंचाने वाले अपने सहयोगियों, भारतीय किसान संघ और स्वदेशी जागरण मंच के अपने सहयोगियों की भी आवाज़ क्यों नहीं सुन रही? और अगर इन की आवाज़ भी नहीं सुन रही, तो फिर आखिर सरकार किस की आवाज़ सुन रही है इस बारे में सवाल उठना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी पूरी तरह से जीएम फसलों के खिलाफ संघर्ष का समर्थन करता है। दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित जश्न-ए-सरसों में सरकार को हर तबके से जीएम सरसों के खिलाफ जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने घोषणा की कि यह सत्याग्रह विज्ञान के खिलाफ न हो कर विज्ञान के पक्ष में है और किसानों का जमीनी वैज्ञानिक के तौर पर सम्मान होना चाहिए। अगर उन का अनुभव जीएम बीजों के खिलाफ है तो इस को सच्चाई के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्यों प्रधानमंत्री के पास दिल्ली में आए हजारों किसानों से मिलने के लिए समय नहीं है पर कंपनियों के कर्ताधर्ता उन के साथ ही यात्रा करते हैं? उन्होंने याद दिलाया कि बीटी बैंगन के मामले में तत्कालीन यूपीए सरकार ने निर्णय लेने के लिए एक लोकतांत्रिक प्रतिक्रिया अपनाई थी और जन सुनवाइयों के माध्यम से निर्णय लिया था। उन्होने मोदी से भी ऐसा ही करने की अपील की।
“सतत और समग्र कृषि (आशा) के लिए गठबंधन” की कविता कुरुगंटी ने कहा कि “यह स्पष्ट है कि हमारे समाज के सभी वर्गों और राज्य सरकारों को इस खरपतवारनाशक सहनशील सरसों के दुष्प्रभावों का एहसास है। यह प्रतिरोध और मजबूत होगा और संभावना यह है कि केंद्र सरकार का वही हाल होगा जो भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर हुआ था”।
देश के प्रमुख खेत मजदूर संगठनों दारा जीएम फसलों के विरोध में शामिल होने से परिदृश्य बदल गया है। अखिल भारतीय कृषि मज़दूर यूनियन के कामरेड थ्रिनवुक्करसू ने कहा कि खरपतवारनाशक सहनशील फसलों के आने से गांवों में रोजगार के अवसर बेहद कम हो जाएँगे। उन्होने सरकार की नीतियों में विरोधाभास को इंगित करते हुए कहा कि एक ओर सरकार हजारों करोड़ रुपये नरेगा जैसी योजनाओं पर खर्च कर के गाँवों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के प्रयास कर रही है दूसरी ओर खरपतवारनाशक सहनशील फसलें ला कर गाँवों में मौजूदा रोज़गार के अवसरों को नष्ट किया जा रहा है। एटक की अमरजीत कौर ने भी इन विचारों का समर्थन किया। एक अनुमान के अनुसार अगर जीएम सरसों के तहत सरसों के अंतर्गत रकबे का 25% भी आ जाता है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 4.25 करोड़ रोज़गार-दिवस खत्म हो जाएँगे। इस का सबसे बड़ा असर भाजपा शासित मुख्य सरसों उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा पर पड़ेगा। इस लिए सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।
डॉ देबल देब, प्रसिद्ध पौधा प्रजनन विशेषज्ञ समेत कई वैज्ञानिकों ने विस्तार से समझाया कि जीएम सरसों को बढ़ावा देना असली विज्ञान को नकारने के समान है।
सरसों सत्याग्रह ने एक विस्तृत ज्ञापन जिस में ठोस वैज्ञानिक आधार पर सभी वर्गों की चिंताओं को रेखांकित किया गया था और जिस का समाज के भिन्न-भिन्न तबकों ने समर्थन किया था प्रधान मंत्री और संबन्धित मंत्रियों को प्रेषित किया। उपभोक्ताओं, महिलाओं, किसानों और वैज्ञानिकों के विभिन्न प्रतिनिधिमंडल प्रधान मंत्री, पर्यावरण मंत्री, कृषि मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, वाणिज्य मंत्री, महिला एवं बाल विकास मंत्री आदि को मिलने गए ताकि उन को उन की विभागीय ज़िम्मेदारी का एहसास दिला कर जीएम जीएम सरसों को रोकने के लिए आवश्यक कार्यवाही करने के लिए प्रेरित किया जाये।
न्यायिक मोर्चे पर भारत के उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका के माध्यम से जीएम सरसों की व्यवसायिक खेती को चुनौती देने वाले वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने धरने को संबोधित करते हुए कहा कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार आज न्याय और राष्ट्र के बीच में रोड़ा बन कर खड़ी है और लगातार अदालत में झूठे शपथ-पत्र और सफ़ेद झूठ बोल कर माननीय सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश कर रही है” ।
देश में जीएम तेलों के आयात के संदर्भ में भ्रामक तथ्य को आधार बना कर देश के भीतर जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने का तर्क दिया जा रहा है। हमें जीएम कनोला और जीएम सोयाबीन तेल के आयात पर घोर आपति है। इन उत्पादों की कोई जाँच नहीं की गई और बिना इन के प्रभावों की पर्याप्त एवं उपयुक्त जाँच के इन को सुरक्षित नहीं माना जा सकता। इस के साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि वास्तव में, आयातित जीएम कनोला तेल की मात्रा हमारी कुल खपत का 2% से भी कम है। इस के अलावा आयातित जीएम तेल के खतरे और यहाँ पर जीएम सरसों की खेती के खतरों में ज़मीन आसमान का फर्क है। अगर हमारे यहाँ जीएम सरसों की खेती होती है तो हम न केवल जीएम सरसों का तेल प्रयोग करेंगे अपितु उस के पत्तों और बीज का भी उपयोग करेंगे। इस खेती के दुष्प्रभाव हमारी मिट्टी, यहाँ के जीव जंतुओं और पर्यावरण पर भी पड़ेंगे जब कि आयातित तेल के प्रभाव केवल मानव स्वास्थ्य पर पड़ेंगे।
धरने के अंत में सभी सत्याग्रहियों ने खड़े होकर शपथ ले कर हमारी खेती, हमारे भोजन और हमारी संप्रभुता को बचाने की इस लड़ाई को जारी रखने की शपथ ली।
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कविता कुरुगंटी: 088800 67772; राजिंदर चौधरी: 94161 82061; किरण विस्सा: 09701705743;