नागरिकों द्वारा संशोधित जीन युक्त (जीएम) खाद्य पदार्थों पर एफएसएसएआई के प्रस्तावित अपर्याप्त विनियमों को अस्वीकार करने की प्रक्रिया शुरू – सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए समय सीमा को 15 जनवरी 2022 से आगे बढ़ाने की मांग फ़ैली

नई दिल्ली, 6 जनवरी 2022:जीएम खाद्य पदार्थों पर एफएसएसएआई के प्रस्तावित नियमों के खिलाफ नागरिकों की आवाज़ तेज़ी से उठ रही है। नागरिक प्रस्तावित विनियमों पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने के लिए एफएसएसएआई द्वारा दी गई समय सीमा के विस्तार के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं में इन को उपलब्ध कराने मांग कर रहे हैं। कई सालों की टाल-मटोल के बाद एफएसएसएआई ने 15 नवंबर 2021 को पदार्थों पर पर प्रस्तावित विनियम जारी किये थे। दरअसल, अप्रैल 2016 से ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत आने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आने वाली एफएसएसएआई के बीच भारत में जीएम खाद्य पदार्थों के विनियमन का मुद्दा झूलता रहा है और इसे लगभग अनियंत्रित छोड़ दिया गया है। सार्वजनिक दबाव में 1 जनवरी 2021 से एक नयी व्यवस्था के तहत एफएसएसएआई ने कुछ चुनिंदा फसलों (सेब, बैंगन, मक्का, गेहूं, खरबूजा, अनानास, पपीता, आलूबुखारा, आलू, चावल, सोयाबीन, चकुंदर, गन्ना, टमाटर, शिमला मिर्च, कुम्हड़ा, अलसी, बीनप्लम और कासनी) के सभी आयातकों के लिए एक “गैर जीएम मूल-एवं-जीएम-मुक्त” प्रमाणन अनिवार्य कर दिया था परन्तु यह व्यवस्था प्रसंस्कृत जीएम खाद्य पदार्थों पर लागू नहीं की गई है।

इस पृष्ठभूमि में एफएसएसएआई द्वारा सार्वजनिक आपत्तियों या सुझावों के लिए दी गई समय सीमा को बढ़ाने की मांग उठी है । प्राधिकरण द्वारा इन प्रस्तावित विनियमों पर एक सीमित एवं पूर्व निर्धारित प्रारूप में सार्वजनिक टिप्पणियां 15 जनवरी, 2022 तक मांगी गई हैं।

“यह स्पष्ट है कि एफएसएसएआई भारत में जीएम खाद्य पदार्थों के आसान प्रवेश का मार्ग खोलने की कोशिश कर रहा है- प्रस्तावित विनियम या तो इस उद्देश्य या सोचविचार की कमी या नियामक में आवश्यक विशेषज्ञता/क्षमता की कमी या नियामक की अपने जनादेश के प्रति गैर- जिम्मेदारी को प्रतिबिंबित करते हैं। ट्रांसजेनिक प्रौद्योगिकी की सुरक्षा सम्बन्धी अंतर्निहित सीमाओं को देखते हुए हम पहले से कहते रहे हैं कि ट्रांसजेनिक प्रौद्योगिकी के आवेदकों को केवल मानकों/नियमों में ढील दे कर ही मंजूरी मिल सकती है। अब एफएसएसएआई ठीक वैसा ही कर रहा है।यह आवेदकों के लिए एक अनुकूल राह खोलने में मदद कर रहा है”। जतन  ट्रस्ट के कपिल शाह ने कहा कि “खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 की धारा 16 के तहत खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण की सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करना। इस के बावजूद कि जीएम खाद्य पदार्थों के प्रतिकूल प्रभावों पर पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत उपलब्ध हैं प्रस्तावित विनियमन इस ज़िम्मेदारी की अनदेखी करते हैं”।

बीटी बैंगन और जीएम एचटी सरसों के सन्दर्भ में हुई सार्वजनिक चर्चा एवं उपभोक्ता सर्वेक्षणों से यह स्पष्ट हो चुका है कि भारतीय नागरिक नहीं चाहते कि जीएम खाद्य पदार्थ उनके आहार में शामिल हों। ज्यादातर राज्य सरकारों ने भी भोजन एवं खेती में जीएम तकनीक को शामिल करने के खिलाफ नीति अपनाई है। कपिल शाह ने कहा कि ‘नाकाम बायोटेक इंडस्ट्री की चोर दरवाजे से जीएम खाद्य पदार्थों को घुसाने की कोशिश प्रस्तावित विनियमन प्रस्तावों से साफ़ झलकती है’।

जीएम-फ्री भारत  के लिए गठबंधन की कविता कुरुगंती ने कहा कि “एफएसएसएआई के साथ हमारा पिछला अनुभव बहुत अच्छा नहीं है। वर्षों से उन्होंने भारतीय खाद्य श्रृंखला में अवैध जीएम खाद्य पदार्थों के प्रवेश के संबंध में अपनी जिम्मेदारी को नज़रंदाज़ किया है। जब एफएसएसएआई द्वारा जीएम खाद्य पदार्थों पर वैज्ञानिक पैनल के गठन की बात आई, तो हमें उन्हें यह बताना पड़ा कि हितों के टकराव की उनकी समझ कितनी सीमित थी, कि इन समितियों में केवल जैव-सुरक्षा विशेषज्ञ होने चाहियें। इस के विपरीत हमने पाया कि उनके वैज्ञानिक पैनल में जीएम फसल विकसित करने वाले लोग भी शामिल थे। ऐसा लगता है कि बाद में पैनल का पुनर्गठन तो किया गया पर पहले से शामिल हितों की टकराहट वाले सदस्य बने रहे। असल में वैज्ञानिक पैनल में विशेषज्ञों के चयन का कोई मापदंड सार्वजानिक नहीं किया गया। इस के चलते  नवंबर 2021 में अधिसूचित प्रस्तावित विनियम एफएसएसएआई द्वारा नागरिक हितों से समझौता और हमेशा की तरह खाद्य उद्योग के व्यवसाय को सुविधाजनक बनाए रखने का प्रयास को ही इंगित करते हैं। खाद्य उद्योग से पूर्व चर्चा  के बाद ही इन विनियमन प्रस्तावों को आम जनता की टिप्पणी के लिए रखा गया है। हम इन प्रस्तावित विनियमों को स्वीकार नहीं करते”।

“मसौदा विनियमों में इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि ‘प्राधिकरण’ अपने निर्णय कैसे लेगा, किस तरह की जैव सुरक्षा विशेषज्ञता के साथ लेगा, और न ही यह कि जीएम पदार्थों के दीर्घकालिक प्रभावों की स्वतंत्र पड़ताल के परिणामों की वो सार्वजानिक परीक्षण व्यवस्था क्या होगी जो निर्णय लेने में एफएसएसएआई का मार्गदर्शन करेगी। जीएम पदार्थों को आवश्यक रूप से इंगित करने के लिए प्रस्तावित न्यूनतम स्तर से प्राधिकरण की सोच की दिशा स्पष्ट हो जाती है। प्रस्तावित विनियमन पर सार्वजानिक चर्चा के दौरान प्रतिक्रिया देने की समय सीमा के विस्तार के लिए नागरिकों से मांग उठ रही है। इस आशय का एक पत्र आज एफएसएसएआई को भेजा गया है। क्योंकि नागरिक इस मुद्दे पर नियामक के साथ गहन संवाद करने के इच्छुक हैं, और यह देखते हुए कि यह मुद्दा कितना महत्वपूर्ण और विवादास्पद है, एफएसएसएआई को सार्वजनिक प्रतिक्रिया देने की समय सीमा को कम से 6 महीने बढ़ाना चाहिए एवं प्रस्तावित विनियमों को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराना चाहिए। इस सम्बन्ध में जगह जगह सार्वजनिक परामर्श भी आयोजित किये जाने चाहियें। इस बीच विनियमन अधिसूचित न होने एवं एफएसएसएआई द्वारा कोई अनुमति नहीं होने के कारण भारत में बेचे जाने वाले किसी भी जीएम खाद्य पदार्थों को अवैध माना जाना चाहिए”। जीएम-फ्री भारत के लिए गठबंधन के सह-संयोजक एवं किसान राजेश कृष्णन ने कहा कि ‘असल में अभी के लिए एफएसएसएआई को मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश में अवैध जीएम खाद्य पदार्थ बेचने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई हो’।

इस बीच, change.org जैसे प्लेटफार्मों पर एफएसएसएआई से यह सुनिश्चित करने के मांग करती हुई कि भारत की खाद्य श्रृंखला को जीएम-मुक्त रखा जाए ऑनलाइन सार्वजनिक याचिकाएं हजारों भारतीयों के हस्ताक्षर के साथ जोर पकड़ रही हैं।

 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:

कविता कुरुगंटी 8880067772;

कपिल शाह 7567916751;

राजेश कृष्णन 7559915032

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