माननीय सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह: जहां भी जीएम सरसों की रोपाई की गई है, उसे उखाड़ने का आदेश जारी करे

प्रेस विज्ञप्ति

भारत सरकार को जीएम सरसों पर असत्य और गलत बयानों के साथ भारत के सर्वोच्च न्यायालय को गुमराह करना बंद करना चाहिए: भारत को असुरक्षित जीएम सरसों की आवश्यकता नहीं

माननीय सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह: जहां भी जीएम सरसों की रोपाई की गई है, उसे उखाड़ने का आदेश जारी करे

नई दिल्ली, 28 नवंबर 2022: आज की प्रेस वार्ता में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक और अन्य विशेषज्ञों ने भारत सरकार द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय को जीएम सरसों पर सुनवाई में अपने हलफनामों में असत्य और गलत सूचनाओं को सक्रिय रूप से डालने पर चिंता व्यक्त की और भारत संघ से अपील की के अब समय है की सत्य को उजागर किया जाए और झूट को नाकारा जाए। उन्होंने बताया कि यह मामला देश के सभी नागरिकों के जीवन और आजीविका पर गंभीर प्रभाव डालेगा, खासकर आनुवंशिक रूप से संशोधित / शाकनाशी रसायनों को सहन कर सकने वाली जी एम सरसों की व्यावसायिक खेती मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण, आजीविका और व्यापार सुरक्षा जैसे कई मोर्चों पर काफी खतरनाक साबित होगा। आज की मीडिया से बातचीत बहुत अहम है क्योंकि आने वाले कल (29 नवंबर) को सर्वोच्च न्यायालय में जीएम हर्बिसाइड टॉलरेंट सरसों की आवश्यकता और सुरक्षा, कोर्ट की तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टी.ई.सी) की सिफारिशों, डेटा की सत्यता और जैव सुरक्षा डोजियर के संबंध में पारदर्शिता, अनुमोदन प्रक्रियाओं और न्यायालय के रोक के बावजूद कम से कम छह स्थानों पर जीएम सरसों के रोपण पर सुनवाई हो सकती है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैनलिट्स ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया कि माननीय न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए, कई जगहों पर लगाई गई जीएम सरसों की फसल को उखाड़ने और नष्ट करने के लिए तुरंत आदेश पारित किया जाए।

“हम इस खतरनाक तत्परता के साथ कह सकते है कीं भारत सरकार ने इस मामले से संबंधित सुनवाई के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय को दिए गए अपने वचन का उल्लंघन किया है, और न्यायालय के आदेशों की अवमानना की है, जब उसने 1 नवंबर 2022 के आसपास छह स्थानों पर जीएम सरसों की रोपाई होने दिया । वास्तव में, सुप्रीम कोर्ट 2016 और 2017 में पक्षकारों की दलीलों को नहीं सुन सकी क्योंकि भारत सरकार द्वारा अदालत में बार-बार यह कहा गया था कि जीएम सरसों पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। मगर अब, भारत संघ, उसके नियामकों, पर्यावरण मंत्रालय और कृषि मंत्रालय के तंत्रों द्वारा आनन फन्नं में बिना सुप्रीम कोर्ट को सूचित किये हुए जीएम सरसों पर निर्णय ले लिया है। इसका मतलब है कि जहाँ जहाँ इस अनुवांशिक सरसों की बिजाई हो गई है वहां लगभग एक हफ्ते के कम समय में, जीएम सरसों के पराग गैर-जीएम सरसों को पुरुष बाँझपन और शाकनाशी सहिष्णु विशेषता सहित ट्रांसजीन से दूषित करना शुरू कर देंगे। और इसलिए, हमारी सरसों की विविधता को अपरिवर्तनीय और अपूरणीय क्षति से बचने के लिए, जो जीएम सरसों लगाई गई है, उसे तुरंत उखाड़ना अतयंत आवयशक होगा। हम सर्वोच्च न्यायालय से, भारत सरकार की अवैज्ञानिक और निराधार कार्रवाइयों के प्रभाव के संदर्भ में, इस मामले को अति गंभीरता से लेने का आग्रह करते हैं”, एलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) के कपिल शाह ने कहा।

जीएम मुक्त भारत गठबंधन की कविता कुरुगंती ने यह आरोप लगाते हुए कहा कि भारत सरकार जीएम सरसों पर असत्य और गलत बयानों के साथ भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय को सक्रिय रूप से गुमराह कर रही है, “हम कम से कम पांच क्षेत्रों को सूचीबद्ध कर सकते हैं जहां सरकार भारत सक्रिय रूप से भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय को गलत जानकारी प्रदान कर रहा है”।

(1) कि न्यायालय की तकनीकी विशेषज्ञ समिति (टी.ई.सी.) की रिपोर्ट को लागू किया जा रहा है और यह कि टीईसी एक विभाजित सदन था – यह बिल्कुल गलत है और सरकार/न्यायालय द्वारा टी.ई.सी. के मूल और स्वतंत्र सदस्यों की प्रमुख सर्वसम्मत सिफारिशें जो की शाकनाशी सहिष्णु फसलों पर प्रतिबंध, बीटी पर रोक और खाद्य फसलों में जीई पर प्रतिबंध, खासकर वह फैसले जिसके लिए हम मूल/विविधता के केंद्र हैं, के बारे में हैं उन सभी सिफारिशों पर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए। यह ध्यान देने योग्य है कि टी.ई.सी. के सरकार द्वारा नामित विशेषज्ञ ने भी इन्ही सभी सर्वसम्मत निष्कर्ष की सिफारिश की थी।

(2) कि जीएम सरसों हर्बिसाइड टॉलरेंट फसल नहीं है क्योंकि आवेदक ने एचटी वाणिज्यिक विशेषता के लिए आवेदन नहीं किया है – यह हमारे नियामकों द्वारा लिया जाने वाला एक बहुत हीअपमानजनक और गैर-जिम्मेदाराना मत है। एक फसल शाकनाशी सहिष्णु है या नहीं इस पर आधारित है कि कौन से जीन इस फसल में डाले गए हैं, और पौधे ने कौन से नए गुण प्राप्त किए हैं, न कि आवेदक पौधे का वर्णन कैसे करता है। बार जीन का अपनी अभिव्यक्ति में कई गुना बढ़ जाना एक महत्पूर्ण संकेत है कि जीएम सरसों एक एचटी फसल के अलावा और कुछ नहीं है। DMH-11 की दोनों पैतृक वंशावलियों में, और HT संकर में भी बार जीन है; इसका मतलब है की वह वे एचटी संतान के अलावा कुछ नहीं पैदा करेंगे। सरकार और उसके नियामक को उन्हें एचटी फसल/लाइनों के रूप में स्वीकार करना चाहिए और उसके अनुसार विनियमन करना चाहिए। एक सरकार और उसकी जीन प्रौद्योगिकियों, बीजों और कीटनाशकों के नियामकों के लिए, जो भारत में अवैध शाकनाशी सहिष्णु कपास के प्रसार को रोकने में पूरी तरह से अक्षम रही हैं, एक एचटी फसल को जानबूझ कर सशर्त स्वीकृति देना और फिर किसानों को अपराधी बनाना पूरी तरह से एक खेल किया जा रहा है जो हमें बिलकुल स्वीकार नहीं।

(3) कि सर्वोच्च न्यायालय में पहली बार यह कहने के बाद कि “हेटेरोसिस, माता-पिता के सावधानीपूर्वक चयन के कारण है और तीन ट्रांसजीन के कारण नहीं है …. डेवलपर्स ने कहीं भी दावा नहीं किया है कि तीन ट्रांसजेन के कारण उपज में वृद्धि हुई है“, और यह भी कि “प्रस्तुत किए गए किसी भी दस्तावेज़ में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है कि DMH-11 गैर-GMO संकरों से बेहतर प्रदर्शन करता है“, फिर यह तर्क देना के “जीएम तकनीक का उपयोग करके विकसित संकरों के कारण सरसों के उत्पादन में वृद्धि के साथ, विदेशी मुद्रा में पर्याप्त बचत होगी” – भारत सरकार का सर्वोच्च न्यायालय को यह बयान पूरी तरह निराधार, अवैज्ञानिक और असंगत है। गौरतलब है कि सरसों के तेल के मामले में भारत आत्मनिर्भर है। हम बार-बार इस ओर इशारा करते रहे हैं कि ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि जीएम सरसों की उपज गैर-जीएम संकर और भारतीय बाजार में पहले से मौजूद किस्मों से बेहतर है । वास्तव में, दुनिया भर में, सबसे अच्छी पैदावार उन देशों में होती है, जिनके पास गैर-जीएम रेपसीड/कैनोला संकर हैं।

(4) कि जीएम-आधारित परागण नियंत्रण तकनीक गैर-जीएम संकरण विकल्पों की तुलना में अधिक प्रभावी है – तुलनात्मक ढांचे में किसी भी आकलन के बिना भी इस मोर्चे पर निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। किसानों, उपभोक्ताओं, पर्यावरण और कृषि श्रमिकों को इस जोखिम भरे बीज उत्पादन तकनीक से होने वाले किसी भी अतिरिक्त लाभ के बारे में अनुभवजन्य साक्ष्य के साथ कुछ भी उल्लेख नहीं किया जा रहा है, जो कि विषमता या संकर ताक़त के बारे में भी नहीं है। इस अनावश्यक और अप्रमाणित जीएम आधारित परागण नियंत्रण दृष्टिकोण में, पर्यावरण और लोगों को जीएमओ के जोखिमों भरे दलदल में झोका जा रहा है, जिसमें तीन बार ग्लूफ़ोसिनेट हर्बिसाइड का छिड़काव भी शामिल है – एक बार पैतृक वंश के रखरखाव / गुणन के दौरान, फिर संकर बीज उत्पादन चरण के दौरान और अंत में, जब किसान एचटी जीएम सरसों की संकर फसल को व्यावसायिक फसल के रूप में उगाएंगा।

(5) कि जीन प्रौद्योगिकियों के संबंध में भारत का नियामक शासन मजबूत और विज्ञान आधारित है। – यह पूरी तरह से असत्य है, और वास्तव में नियामक व्यवस्था को बिगड़ते हुए देखा जा सकता है। जीएम सरसों के साथ, बीटी बैंगन के मामले में जो अपर्याप्त परीक्षण किया गया था, वह भी नहीं किया गया है, जबकि भारत में सरसों बहुत बड़े पैमाने पर उगाई जाती है। एक एचटी फसल का हर्बिसाइड सहिष्णु फसल के रूप में परीक्षण भी नहीं किया गया है और भारत के पास इसके लिए कोई विशिष्ट नियामक प्रोटोकॉल नहीं है। अपारदर्शी कार्यप्रणाली और जैव सुरक्षा डेटा को छिपाने के साथ-साथ हितों का टकराव जारी है। पैरेंटल लाइन्स, हालांकि ये स्वतंत्र घटनाएं हैं, इन दोनों का जीएमओ के रूप में कभी भी परीक्षण नहीं किया गया था। ये सवाल अभी भी बहुत महत्पूर्ण है कि नियामक व्यवस्था में कैसे सुधार किया जाए क्योंकि भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट में दावा कर रही है के हमारी नियामक व्यवस्था मजबूत और विज्ञान आधारित है?

आई.सी.ए.आर. के रेपसीड सरसों अनुसंधान निदेशालय (डी.आर.एम.आर.) के पूर्व निदेशक डॉ. धीरज सिंह ने कहा: “भारत में रेपसीड-सरसों का उत्पादन पिछले एक दशक में लगभग 38% बढ़ा है। जब सरसों के तेल की मांग और आपूर्ति की बात आती है तो हम आत्मनिर्भर हैं, यहां तक ​​कि भारत के खाद्य तेल की खपत का केवल 15% ही सरसों से होता है। इसके अलावा, किसानों के पास पहले से ही बाजार में एक दर्जन से अधिक गैर-जीएम सरसों संकर के विकल्प मौजूद हैं जो जीएम संकर की तुलना में अधिक उपज देते हैं। ऐसे में जीएम सरसों की जरूरत क्यों है? माननीय सर्वोच्च न्यायालय को क्यों कहा जा रहा है कि हमें इस विकल्प की आवश्यकता है, जो जोखिम भरा और अपरिवर्तनीय है?” उन्होंने यह भी कहा कि उपज लाभ सिद्ध होने से पहले जीएम हाइब्रिड के बीजों का उत्पादन करने के पीछे कोई तर्क नहीं है। अन्य देशों के अनुभव का हवाला देते हुए उन्होंने अनुसंधान स्टेशनों पर देशी सरसों की फसल और जननद्रव्य (germplasm) में क्षैतिज जीन स्थानांतरण की चिंताओं को साझा किया।

गांधी पीस फाउंडेशन के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि कृषि विकास के लिए हमारा दृष्टिकोण समग्र, वैज्ञानिक और किसानों के लिए वास्तविक स्वराज के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाने वाला होना चाहिए। वैज्ञानिक तथ्यों से छेड़छाड़ करना देश में वैज्ञानिक सोच में सुधार के लिए अच्छा नहीं है, और यह विभिन्न संस्थानों में वैज्ञानिक अखंडता से समझौता होगा। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से वास्तविक तथ्यों का संज्ञान लेने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि जहाँ जहाँ भी जीएम सरसों  की रोपाई हो चुकी है उसे तुरंत उखाड़ फेका जाए।

किसान नेता श्री धर्मवीर सिंह ने भारत भर से चालीस से अधिक किसान नेताओं द्वारा माननीय प्रधान मंत्री को भेजा गया पत्र साझा किया जिसमे किसान नेताओं ने जीएम एचटी सरसों के पर्यावरणीय रिलीज को रोकने का अनुरोध किया गया है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे बीटी कपास अनुमति पत्र में ‘रिफ्यूजिया शर्त’ का कभी पालन नहीं किया गया और न ही इसके लिए किसी को जिम्मेदार बनाया गया, यह समझाने के लिए काफी है के कि कैसे जीएम सरसों के मामले में जी.ई.ए.सी. की “सशर्त मंजूरी” अर्थहीन और हास्यास्पद है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बीटी कपास के अनुभव को देखते हुए जीएम फसलें किसानों के अनुकूल नहीं हैं। उन्होंने यह भी मांग की कि जहां भी जीएम सरसों लगाई गई है, उसे उखाड़ दिया जाए।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैनलिस्टों ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करना बंद करने के लिए कहा, और इसके बजाय सटीक और पूरी जानकारी पेश करने का आग्रह किया कि बार जीन वाली जीएम फसल का शाकनाशी सहिष्णु फसल के रूप में परीक्षण न करने का वैज्ञानिक तर्क क्या है; वास्तव में एचटी फसलों पर शाकनाशियों के अवैध उपयोग को रोकने के लिए क्या परिचालन योजना है जब प्रधान मंत्री द्वारा कमीशन FISEC भी एचटी कपास के अवैध प्रसार को रोक नहीं सका; जीएम सरसों के दावे/परियोजना उपज और उत्पादन में वृद्धि का वैज्ञानिक प्रमाण कहां है; एक तुलनात्मक ढांचे में गैर-जीएम की तुलना में जीएम संकरण का क्या साक्ष्य है, पैरेंटल लाइन्स पर किए गए परीक्षणों का पूरा विवरण और डाटा कहाँ है जिसे अनुमोदित किया गया है।

अधिक जानकारी के लिए कपिल शाह से 7567916751 / कविता कुरुगंटी से 8880067772/डॉ धीरज सिंह 7983549955  पर संपर्क करें।

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