दिनांक : 27 November 2022
श्री नरेन्द्र मोदी
माननीय प्रधान मंत्री
भारत सरकार
नई दिल्ली
को कॉपी:
श्री भूपेंद्र यादव,
माननीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री,
भारत सरकार
नई दिल्ली
श्री नरेंद्र सिंह तोमर
कृषि और किसान कल्याण मंत्री
भारत सरकार
नई दिल्ली
विषय : जी. एम. /एच.टी. सरसों, डी.एच.एम-11 के “पर्यावरण रिलीज” को रोकने हेतु
आदरनिये श्री नरेन्द्र मोदी जी
हम जी.एम. एचटी सरसों, डीएचएम-11 और इसके पैतृक वंशक्रम जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है के पर्यावरण रिलीज को मंजूरी देने के जीईएसी के निर्णय पर अपना घोर विरोध और गहरी निराशा व्यक्त करना चाहते हैं। इस विषय में जारी अनुमोदन पत्र और मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस पैतृक वंशक्रम को पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के शोध संस्थानों को नए अन्य हाइब्रिड्स विकसित करने हेतु वितरित किया जाएगा ।
हम इस कदम का पहले की तरह इस बार भी पुरजोर विरोध करते हैं । क्योंकि यह आनुवंशिक रूप से संशोधित / शाकनाशी रसायनों को सहन कर सकने वाली जी एम सरसों किसानों को कोई आर्थिक लाभ नहीं पहुंचाएगी और हमारी अत्यधिक संपन्न सरसों की जैव विविधता, मिट्टी और पर्यावरण को और अधिक दूषित करेगी ।
यह कदम सरसों उगाने वाले किसानों, मधुमक्खी पालकों की रोजीरोटी पर भी संकट पैदा कर देगा। किसान पहले से दबाव में है। यह एचटी मस्टर्ड उन्हें शाकनाशी (ग्लूफोसिनेट) के उपयोग के साथ और जोड़ देगा, जिससे इस जहर के उत्पादक बड़े कृषि-रासायन बेचने वाली कम्पनी बायर को ही लाभ पहुंचेगा। आपका मंत्रालय जो ऐसे मामलों का नियामक भी है ने डीएचएम-11 की रिलीज के पक्ष में कई ‘दावे’ किए हैं, जो तर्क और विज्ञान के अनुसार ठीक नहीं हैं।
उपज में बढ़ौतरी का दावा
कई वर्ष पूर्व ही स्वतंत्र वैज्ञानिकों द्वारा जीएम एच टी सरसों के उपज बढ़ाने के दावों का पर्दाफाश किया जा चुका है, यह दावे खोखले और सच्चाई से परे हैं। आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ और तोड़मरोड़ करने के साथ साथ आईसीएआर के प्रोटोकॉल्स को ताक पर रख कर प्रस्तुत किया गया है। भारत सरकार और उसकी नियामक संस्थाओं के द्वारा इस फसल के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए झूठे दावों को बार बार दोहराया जाना पूर्णतया अवैज्ञानिक और गैर जिम्मेदाराना है। जबकि असलियत यह है कि जीएम सरसों की उपज कम आने वाली है। यदि यह जीएम सरसों की किस्म को मंजूरी दे दी जाती है तो इसकी उपज बाजार में पहले से उपलब्ध गैर जीएम किस्मों और हाइब्रिडस को तुलना में कम होने वाली है। यह इसके बीजों में मौजूद नपुंसकता के गुण और शाकनाशी ड्रिफ्ट की वजह से होगा क्योंकि हमारे किसानों को अपने खेत में फसल से बीज बना कर खेती करने की ही आदत है।
स्वदेशी होने का दावा
सबसे पहले, यह दावा कि जीएम सरसों स्वदेशी है और भारत में विकसित की गई है, पूरी तरह से गलत है। हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि 2002 में, प्रोएग्रो सीड कंपनी जो कि बायर कम्पनी की एक सहायक कंपनी ने इसी तरह की जी एम् सरसों के व्यापारिक अनुमोदन के लिए आवेदन किया था अब उसी तरह की एक किस्म का प्रो पेंटल और उनकी टीम अब एचटी सरसों डीएमएच 11 के रूप में प्रचार कर रहे हैं। उस समय बेयर के आवेदन को ठुकरा दिया गया था क्योंकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कहा था कि उनके फील्ड परीक्षणों ने बेहतर उपज का सबूत नहीं दिया। जैसा कि सभी जानते हैं कि जीएम सरसों का संकरित बीज दो जीनों बार्नेज और बारस्टार के माध्यम से करके प्राप्त किया जाता है, जो कि बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से प्राप्त होता है। बार-बारस्टार-बर्नेज जीन बायर क्रॉप साइंस की एक पेटेंट तकनीक है। बेयर स्वदेशी कंपनी नहीं है! उनके नाम से पेटेंट कराए गए उत्पाद को स्वदेशी कैसे कहा जा सकता है? दरअसल तथ्य यह है कि सरसों की इस किस्म के निर्माण में प्रो. पेंटल के द्वारा उपयोग किये गए जीन्स का पेटेंट बायर कपनी के पास है इस बात को जानबूझकर भारत के लोगों से छिपाया गया है। स्वदेशी बीटी कपास के नाम पर बीकानेरी बीटी कपास जिसे बाद में भारत सरकार की ही अनुसंधान संस्थाओं की सिफारिश पर वापिस ले लिया गया था की घपलेबाजी की कहानी को हम सभी ने देखा है। स्वदेशी के नाम पर बी टी सरसों की कहानी भारतीय किसानों के गले से नीचे नहीं उतरेगी। सबसे ऊपर बात यह है कि जहर जहर ही होता है वो चाहे विदेशी हो या स्वदेशी।
जैव सुरक्षा परीक्षण के दावे
दिल्ली विश्वविद्यालय में एचटी सरसों डीएमएच 11 को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत किए गए जैव सुरक्षा डेटा पर ध्यान देने वाले वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने स्पष्ट रूप से बताया है । दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों जिन्होंने जीएम सरसों को विकसित किया है के द्वारा जैव सुरक्षा के जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं उनसे स्पष्ट पता चलता है कि कि जीएम सरसों का कड़ाई से परीक्षण भी नहीं किया गया है और यह भी कहा गया है कि यह एक शाकनाशी रसायनों को सहन कर सकने वाली फसल है जबकि ऐसे कोई परीक्षण कभी किए ही नहीं गए हैं। जीएम सरसों के द्वारा पर्यावरण और मनुष्य की सेहत पर जैव सुरक्षा संबंधित किए गए परीक्षण बेहद छोटे स्तर पर किए गए हैं जो कि जैव सुरक्षा की दृष्टि से पर्याप्त नहीं हैं। भारतीय चिकित्सीय पद्धतियों पर भी इसके प्रभाव होंगे जिन्हें अभी नजरंदाज किया जा रहा है। एक बात जो बेहद महत्वपूर्ण और ध्यान में रखने योग्य है कि ग्लुफोसिनेट को कि ग्लायफोसेट की ही तरह एक खतरनाक शाकनाशी है। नियामक संस्था के द्वारा इसके पर्यावरण में रिलीज के अनुमोदन बाद यह जानते हुए कि जीएम तकनीक एक जीवंत तकनीक है और इसके दुष्प्रभावों को उलट और नियंत्रित नहीं किया जा सकता है पर परीक्षण जारी रखने को कहना पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना है।
विदेशी मुद्रा में अपेक्षित बचत के दावे
जो कहा जा रहा है कि जीएम सरसों के अनुमोदन से खाद्य तेलों के आयात में कमी आयेगी जबकि यह बात नहीं बताई जा रही है कि भारत में सरसों की मांग और आपूर्ति के मद्देनजर खाद्य तेलों के मसले में लगभग आत्मनिर्भर है। यह भी देखा जाना चाहिए कि भारत में खाद्य तेलों की खपत समाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से क्षेत्रानुसार है। सरसों का उत्पादन बढ़ाने का अर्थ यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि दक्षिण भारत के निवासी सरसों के तेल का उपयोग अपने भोजन में करना शुरू कर देंगे ।
आज भारत विश्व को लगभग 5 लाख करोड़ खाद्य उत्पादों का निर्यात कर रहा है। चूंकि हमारे देश ने खाद्य फसलों में जीएम की अनुमति नहीं दी है, हमारे निर्यात पर गैर-जीएम टैग हमें यूरोपीय देशों से ऑर्डर प्राप्त करने में मदद करता है, जहां जीएम प्रतिबंधित है। अगर हम अपनी खाद्य खाद्य फसलों में जीएमओ की अनुमति देते हैं, तो हम इन देशों को होने वाले निर्यात खो देंगे और हमें बड़ा आर्थिक नुक्सान होगा । वास्तविकता यह है कि जैविक सरसों के तेल और खल जिसका उपयोग मिट्टी सुधारक के तौर पर किया जाता है की निर्यात सुरक्षा पर सीधा खतरा उत्पन्न हो जाएगा। भारत सरकार के इस अज्ञानता पूर्ण कदम से शहद का निर्यात भी बर्बाद हो जाएगा।
मधुमक्खियों एवं शहद के निर्यात पर प्रभाव
सरसों न केवल हमारे किसानों के लिए अपितु मधुमक्खी पालकों के लिए भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण रबी फसल है और लाखों शहद उत्पादक आजीविका के लिए सरसों पर निर्भर हैं ऊपर से इस फसल की उपज भी मधु मक्खियों द्वारा किये गये खुले परागण से भी बढ़ती है। यह संभव है कि इस जीएम सरसों का मधुमक्खियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिनका संकेत हमें उन अध्यनों से मिलता है जो जीएम बीज उद्योग द्वारा प्रायोजित नहीं हैं। यह हमारे फसल उत्पादन और शहद उत्पादन को भी प्रभावित करेगा। यह देखा गया है कि शहद उद्योग भारत में एक उभरता हुआ उद्योग है, और सरसों भारतीय मधुमक्खी पालकों के लिए प्रमुख स्रोतों में से एक है। सरसों के साथ मधुमक्खी पालन सरसों की पैदावार में लगभग 20-25% की वृद्धि करके एक जीत की स्थिति पैदा करता है, भले ही यह शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालक के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया भी है। अब, जीएम सरसों के रिलीज के परिणामस्वरूप मधुमक्खियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, शहद का उत्पादन कम हो सकता है, दूषित शहद के मद्देनज़र इसका निर्यात भी रुक सकता है । यह असर ट्रांसजेनिक पराग कणों के दूषण और शहद में शाकनाशियों के अवशेषों की उपस्थिति के कारण होगा।
मौजूदा प्रमाणित जैविक किसानों पर प्रभाव
हम किसान इस बात के लिए हमेशा गर्वित महसूस करते हैं कि हमने सदैव टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के साथ साथ अपनी फसलों में जैव विवधता को बढ़ाया है और बीजों की नस्लों को शुद्ध रखने का प्रयास किया है। डीएचएम 11 जैसी जीएम फसलों जब हमारे पड़ोस के खेतों में उगेंगी तो हम अपने बीजों की नस्ल की शुद्धता और जैविक प्रमाणिकता को कैसे सुनिश्चित रख पाएंगे । जीएम सरसों की यह किस्म शाक नाशियों को सहन कर सकने वाली है जो किसानों को खतरनाक रसायनों के अत्याधिक प्रयोग हेतु प्रेरित करेगी । गैर जीएमओ जैविक सरसों के खेतों को यह पेस्टीसाइड ड्रिफ्ट दूषित कर देगा। यह बात हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा देश में जैविक और प्राकृतिक खेती को अधिक से अधिक अपनाने और बढ़ावा देने के प्रयासों के बिलकुल विपरीत भी है।
जीएम प्रौद्योगिकी की अप्रमाणितता और कृषि-रसायनों पर अत्यधिक निर्भरता
जीएम फसलें एक अप्रमाणित तकनीक का परिणाम है, जो वैज्ञानिक कसौटी पर खरी नहीं उतरी है। ये उस सिस्टम पर एक अतिरिक्त अवांछित दबाव के जैसा है जो किसान को पहले से सिकोड़ और सुखा रहा है यदि हम इसी दिशा में आगे बढ़ते रहे तो जो हमारी राष्ट्रीय सम्प्रभुता हमारी खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के चलते खड़ी है वह जीएम फसलों के माध्यम से कॉर्पोरेट हितों की रक्षा के मद्देनज़र खतरे में पड़ जाएगी ।
एक तरफ भारत गर्व से अपने किसानों को प्राकृतिक/टिकाऊ खेती अपनाने के लिए कह रहा है, और दूसरी तरफ, आप इस तकनीक को हमारे ऊपर पर थोप रहे हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक खेती के सभी सिद्धांतों के खिलाफ है।
सरसों हमारे लिए सिर्फ एक किस्म नहीं है यह हमारी संस्कृति का एक अहम अंग है। यह हमारे लोकगीतों में गाया जाता है और हमारी सर्वप्रिय संस्कृति में उत्सव के रूप में मनाया भी जाता है। भारत सरसों की जैव विविधता का केंद्र भी है और बहुत सारी आधिकारिक कमेटियों ने समय समय पर फसलों के उत्पन केंद्रों और जैव विविधता के केंद्रों पर ट्रांसजेनिक तकनीकों के विरोध में अनुमोदन किया है।
हमारी खाद्य आपूर्ति, मिट्टी और पर्यावरण में जीएमओ द्वारा दूषण किए जाने को हमारे किसान कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। यह एक ऐसा राक्षस है जो यदि एक बार जाग गया तो इसे वापिस सुलाया नहीं जा सकेगा।
हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं और आपसे इन बिंदुओं का संज्ञान लेने का निवेदन भी करते हैं कि जीएम सरसों और इसके परीक्षणों का अनुमोदन तुरंत वापिस लिया जाए। ऐसा करके आप आप जीएमओ द्वारा हमारी जैव विविधता, मिट्टी, भोजन और पर्यावरण को होने वाली अपूरणीय क्षति से बचा सकते हैं। ऐसी खतरनाक तकनीक से जुड़े मसलों पर नीति निर्माण करते समय भारत सरकार हमारे जैसे आम नागरिकों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखती है तो हमें अपनी रुचि को बचाने के लिए संघर्ष की राह को अपनाना पड़ेगा।
किसान नेताओ और संगठनो द्वारा हस्ताक्षरित
- युद्धवीर सिंह, जनरल सेक्रेटरी, भारतीय किसान यूनियन,
- राकेश टिकैत, नेशनल स्पोकेसपर्सन, भारतीय किसान यूनियन,
- चुक्की नानजुंदास्वामी, स्टेट स्टीयरिंग समिति मेंबर, कर्नाटक राज्य रैयत संघ,
- अतुल कुमार अंजान, राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय किसान सभा,
- आर. वेंकैया, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान सभा,
- रामपाल जाट, राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान महापंचायत,
- योगेंद्र सिंह उगराहां, अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (ए) उग्रहां, पंजाब,
- गुरनाम सिंह चादुनी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीकेयू चादुनी,
- च. रिशपाल अम्बावता, नेशनल प्रेसिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (अम्बावता),
- राजेश सिंह चौहान, नेशनल प्रेसिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (नॉन-पोलिटिकल),
- रणजीत सिंह राजू, अध्यक्ष, ग्रामीण किसान मजदूर समिति (जीआईकेएस), राजस्थान
- सुरेश कोठ, प्रेजिडेंट, भारतीय किसान मजदूर यूनियन, हरयाणा
- मनजीत सिंह राय, प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (द्वाबा), पंजाब
- तेजनेडर सिंह विर्क, प्रेजिडेंट, तराई किसान संगठन, उत्तराखंड
- जगमोहन सिंह, जनरल सेक्रेटरी, भारतीय किसान यूनियन डाकोण्डा, पंजाब,
- जगदीप सिंह ओळख, भारतीय किसान यूनियन सर छोटू राम, हरयाणा
- रवनीत सिंह बरार, भारतीय किसान यूनियन (काद्यान), पंजाब
- तेजवीर सिंह, भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह), हरियाणा,
- के. वी. बीजू, राष्ट्रीय समन्वयक, राष्ट्रीय किसान महासंघ,
- नेल्ला गौंडर, राष्ट्रीय समन्वयक, तमिलनाडु किसान संघ,
- पी. एस. अजय कुमार, राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय कृषि और ग्रामीण श्रमिक संघ, आंध्र प्रदेश,
- अन्वेष रेड्डी स., चेयरमैन, तेलेंगाना किसान कांग्रेस,
- पी. जमालयः, स्टेट समिति मेंबर, आल इंडिया किसान सभा (सीपीआई), आंध्र प्रदेश
- ए. के. डेविसन, केरल नारियल किसान संघ,
- सतविंदर सिंह, ग्रामीण किसान मजदूर समिति (जीआईकेएस), राजस्थान
- एडवोकेट एस्सान मुरुगासामी, संस्थापक, तमिलनाडु किसान संरक्षण संघ,
- दीपक पाण्डेय, सत्याग्रह संघ, मध्य प्रदेश
- हरिंदर सिंह लखोवाल, प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (लखोवाल), पंजाब
- राजपाल शर्मा, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), उत्तर प्रदेश
- करम सिंह पड्डा, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), उत्तराखंड
- अन्नीदार सिंह नॉटी, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), हिमाचल प्रदेश
- राजा राम मील, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), राजस्थान
- रतन सिंह मानं, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), हरयाणा
- विरेंदर सिंह डागर, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), दिल्ली
- अनिल यादव, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), मध्य प्रदेश
- प्रवीण श्योकंद, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), छत्तीसगढ़
- अतुल ठाकुर, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), ओडिशा
- दिनेश सिंह, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), बिहार
- धनसिंघ शेरावत, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), महाराष्ट्र
- जगदीश सिंह, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (नॉन-पोलिटिकल), मध्य प्रदेश
- हरनाम सिंह वर्मा, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (नॉन-पोलिटिकल), उत्तर प्रदेश
- सतविंदर सिंह कलसी, स्टेट प्रेजिडेंट, भारतीय किसान यूनियन (नॉन-पोलिटिकल), उत्तराखंड